क्या हुआ?
क्या हुआ ?
क्या हुआ आज-कल रवि को?
कभी तो तपतपाती गर्मी का मार्ग बनता था,
आज वही कहीं नीरद के पीछे छुपा है|
मानो की बरखा-मेघा-नीरद मिलकर रवि की तेज़ को क्षीण कर रहे हैं।
कभी तो तपतपाती गर्मी का मार्ग बनता था,
आज वही कहीं नीरद के पीछे छुपा है|
मानो की बरखा-मेघा-नीरद मिलकर रवि की तेज़ को क्षीण कर रहे हैं।
क्या हुआ आज-कल दिन-रात के
अन्तर को?
ना दिन होने का पता,
ना रात होने का पता,
मानो नीरद की बरखा ने धुंधला कर दिया सबको।
ना दिन होने का पता,
ना रात होने का पता,
मानो नीरद की बरखा ने धुंधला कर दिया सबको।
क्या हुआ आज-कल पक्षियों को?
जो कभी चहचहाते नज़र आया करते थे,
वही आज मजबूर है बाहर न निकलने को।
मानो मेघा की बरखा ने विवश कर दिया पंछियों को।
जो कभी चहचहाते नज़र आया करते थे,
वही आज मजबूर है बाहर न निकलने को।
मानो मेघा की बरखा ने विवश कर दिया पंछियों को।
क्या हुआ आज-कल इस मौसम को?
की इंसान इतना हर्षित हो गया हो,
यही दुआ है ईश-अलाह से,
की मानो ऐसे ही नीरद-मेघा की बरखा जम के बरसे।
- नीरद थानवी
की इंसान इतना हर्षित हो गया हो,
यही दुआ है ईश-अलाह से,
की मानो ऐसे ही नीरद-मेघा की बरखा जम के बरसे।
- नीरद थानवी
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