क्या हुआ?
क्या हुआ ? क्या हुआ आज-कल रवि को ? कभी तो तपतपाती गर्मी का मार्ग बनता था , आज वही कहीं नीरद के पीछे छुपा है | मानो की बरखा-मेघा-नीरद मिलकर रवि की तेज़ को क्षीण कर रहे हैं। क्या हुआ आज-कल दिन-रात के अन्तर को ? ना दिन होने का पता , ...